Monday, July 18, 2011

ज्योतिष में ग्रहों का सम्बन्ध

जिस प्रकार से रसायन शास्त्र में कई द्रव पदार्थों के मिलाने पर नया पदार्थ बन जाता है,उसी प्रकार से ज्योतिष में कई ग्रहों को मिलाने और उनके द्वारा प्रयुक्त बलों के आधार पर एक नई प्रकृति अपना रूप धारण कर लेती है.खाली गन्धक और पोटास को अलग अलग कितना ही पीटा जाये लेकिन उनका रूप सिवाय चूर्ण होने के और कुछ नही होगा,मगर गन्धक और पोटास को मिलाकर अगर एक हलका सी चोट दे दी जाये,तो दोनो मिलकर विस्फ़ोट कर देंगे और धुंआ बनकर खत्म हो जायेंगे.इसी प्रकार से एक ग्रह कितना ही बलबान हो वह अपने भावानुसार कुछ भी करने के काबिल नही होता,वह केवल अपने समय याने दशा और अन्तर्दशा में थोडा बहुत काम तो करता है,लेकिन पूरी तरह से जीवन में अपना आधिपत्य स्थापित नही कर सकता है,उसी जगह अगर कई ग्रह मिलकर उस ग्रह को बल देना शुरु कर दें या उसका बल खत्म करना शुरु कर दें तो वह ग्रह क्रियात्मक होकर उस दिये गये बल का प्रयोग करना चालू कर देता है,वह बल अगर धनात्मक है तो उसे ऋणात्मक करने की कोशिश होगी,और ऋणात्मक है तो उसे धनात्मक करने की कोशिश होगी.जीव और आत्मा को मिलाकर कर्ता के रूप में प्रयुक्त किया जाता है,आत्मा तो शरीर के अन्दर तभी निवास कर सकती है,जब जीव उसे अपने पास रखने के लिये समर्थ होता है,और जीव को समर्थ होने के लिये अन्य कारक अपने शरीर के अन्दर रखने पडते है,जबतक जीव आत्मा को अपने पास रखने मे समर्थ होता है,आत्मा मुक्त रूप से संसार में विचरण करती है,शरीर में तत्व अगर पूरी तरह से सक्षम है तो आत्मा उसी प्रकार से सुखी रहती है जिस प्रकार से एक व्यक्ति सुन्दर निवास स्थान में रहता है,और उसके लिये सभी सुविधायें उस मकान में रहती है,और अगर बीमार शरीर है,तो आत्मा को उसी प्रकार से कष्ट होता है जिस प्रकार से हावा,पानी,और धूप के प्रभाव को रोकने मे असमर्थ मकान,जो आन्धी आने पर घर में कचडा भर जाता है,पानी बरसने पर घर में कीचड कर जाता है,और रहने वालों को भिगोता रहता है,और धूप में छाया देने में असमर्थ होता है,और जो भी उस घर मे रहता है,हर समय दुखी रहता है.शरीर में जो तत्व जीव को पनपने में अपना योगदान देते है वे इस प्रकार से है:-
गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने रामचरितमानस में लिखा है-’क्षिति,जल,पावक,गगन,समीरा-पंच तत्व विधि रचा शरीरा’,इस चौपाई मे जो ’क्षिति’ शब्द है उसका निरूपण पृथ्वी तत्व से अपना सम्बन्ध रखता है,पृथ्वी तत्व भी लाखों तरह के उपतत्वों के समिश्रण से बना है,इनके वर्गीकरण का अर्थ है,लाखों वर्षॊं तक का काम,इसलिये संयुक्त रूप से इन उपतत्वों को पृथ्वी कहा गयाहै,मिट्टी को सामान्य रूप से एक गमले में रख कर अगर उसमें मिर्ची का बीज बोया जाये तो उसका भेद तीखा होगा,गन्ने को बो दिया जाये तो वह मीठा होगा,मिट्टी वही है,लेकिन उसमें प्रकृति का संयोग करने पर उसका स्वाद और रूप ही बदल जाता है,तुलसी का पौधा जीवन देगा,तो धतूरे का पौधा जीवन का हरण करेगा,इस कारण का भेद और अभेद दोनो ही अपने स्थान पर अटल हैं,पृथ्वी तत्व का वर्गीकरण अन्य किसी स्थान पर आगे करेंगे,इसके बाद ’जल’ तत्व का का कथन है,कहावत भी है,"रहिमन पानी राखिये,बिनु पानी सब सून,पानी गये न ऊबरे मोती,मानुष,चून",पानी संसार के किसी भी तत्व में समा जाने की योग्यता रखता है,पृथ्वी में हर जगह हर प्रक्रुति के अनुसार पानी की मात्रा मिलती है,रेगिस्तान में भी मिलता है,और समुद्र तो पानी का भण्डार है ही,आग मे मिलाने पर भाप बन जाता है,हवा में मिलाने पर बुलबुले बनता है,मीठे मे मिलाने पर मीठा और खट्टे मे मिलाने पर खट्टा,अपनी स्वतन्त्र प्रकृति मे सादा स्वाद रहित.इस पानी में भी वैज्ञानिकों ने दो पूरक तत्वों का समावेश बताया है,आक्सीजन,और हाईड्रोजन,इन दो गैसों को मिला दिया जाये तो पानी बन जाता है,आक्सीजन ही प्राण वायु है,और हाईड्रोजन ही शरीर को उमंग देती है,इसी पानी में अगर गन्धक या खारापन मिला दिया जाये तो वह किसी भी पृथ्वी तत्व के साथ मिलकर कार्बनडाई आक्साइड गैस बन जाता है,जो नकारात्मक प्रभाव देने के लिये काफ़ी है,आक्सीजन सकारात्मक प्रभाव देती है,तो यह नकारात्मक,इसके बाद आग का वर्गीकरण करते है,हवा को गर्म कर देती है और लू का रूप धारण कर लेती है,पानी को भाव बनाकर उडा देती है,मिट्टी को पकाकर पत्थर बना देती है,सोडा और रेत को मिलाकर गर्म करने से कांच का निर्माण कर देती है,कोयला और जिप्सम मिलाकर मिट्टी को गर्म करने से सीमेंट बना देती है,शरीर को गर्म करने से लेकर संसार के प्रत्येक कार्य में इस तत्व का समावेश किसी न किसी रूप में मिलता है,आकाश तत्व सीधे रूप में दिखाई नही देता है,अप्रत्यक्ष रूप से सभी को काम आता है,इसके बारे में भी गोस्वामीतुलसीदासजी ने कहा है,"बिनु पग चलयि,सुनहि बिनु काना,बिनु कर करम करहि विधि नाना",बिना किसी यातायात के साधन के लाखों करोडों मील चला जाता है,बिना किसी हीयरिंग-एड के इसे सब कुछ सुनाई देता है,बिना हाथ के यह सब कुछ कर रहा है,लेकिन समझने वाला होना चाहिये.हवा तत्व शरीर के लिये आकाश तत्व को शरीर मे भेजने और शरीर से शरीर मे होने वाली क्रियाओं की सूचनाओं को आकाश तत्व को देने का काम करता है,आकाश तत्व ही शरीर के बनाने और बिगाडने का काम करता है,जब शरीर में कुत्सित भोजन के द्वारा कुत्सित विचार पनपने लगते है.
Sabhar Sangrheet

4 comments:

Anonymous said...

Panditji badi upyogi jaankari di, dhanyawad. mai bahut puja path karwata hoo lekin uchit fal nahi mil raha hai, kya kroo?

KRISHNA KANT CHANDRA said...

महोदय ,ग्रहों की केमिस्ट्री को आपने बड़े ही तार्किक ढंग से समझाया है |बहुत धन्यवाद |यदि आप ग्रहों के केमिस्ट्री से बनने वाले योगो के फल की सूक्ष्म फलादेश भी लिखे तो साधारण पाठकों को अधिक लाभ मिलेगा |आशा करता हू आगे इस विषय को आप और विस्तृत करेंगे |

KRISHNA KANT CHANDRA said...

महोदय ,ग्रहों की केमिस्ट्री को आपने बड़े ही तार्किक ढंग से समझाया है |बहुत धन्यवाद |यदि आप ग्रहों के केमिस्ट्री से बनने वाले योगो के फल की सूक्ष्म फलादेश भी लिखे तो साधारण पाठकों को अधिक लाभ मिलेगा |आशा करता हू आगे इस विषय को आप और विस्तृत करेंगे |

ज्यौतिषवाराहम् said...

dhanyawad mahoday
Aapke protsahan nishchit hi aage ke liye prerek hoga
aur aapke anusar mai bahut hi sheeghra likhane ka prayas karunga
bhupendra

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