Friday, September 03, 2010

अपराध योग

अपराध अनेक प्रकार के होते हैं। इस बिन्दु के अन्तर्गत सभी को परिभाषित करना दुस्कर कार्य है। लग्न महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लग्न ही मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जो उस जातक के अहं को उकसाती है। छठा भाव मनुष्य के आन्तरिक पाप का है और असामाजिक तत्त्व पैदा करता है। अष्टम भाव उस अपराध के क्रियाकलाप से सम्बन्धित है और नवम भाव से उसका परिणाम प्रभावित होता है। (क) लग्नेश व द्वादशेश अष्टमस्थ हो, षष्ठेश लग्नस्थ, अष्टमेश नवम में तथा राहु द्वादश भाव में हो तो जातक अपराध करता है। (ख) नेपच्यून वक्री हो, सप्तमेश चन्द्रमा दो अशुभ ग्रहो के साथ अशुभ भाव में हो तो जातक अपनी पत्नी का कत्ल कर देता है। अथवा लग्न में नेपच्यून हो, यूरेनस उससे समकोण पर हो, शुक्र और वक्री मंगल आमने-सामने हो, चन्द्र और शनि भी आमने-सामने हो, बृहस्पति सूर्य से समकोण पर हो और शनि लग्न से चतुर्थ स्थान पर हो।


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