- जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बिमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुंचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।
- जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।
- जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।
- जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
- चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।
- जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है।
- जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है।
- जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियां बढ़ती हैं।
- जब राहु के साथ शनि की युति यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियां बढ़ती हैं।
- जब राहु की बुध से युति अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियां बढ़ती हैं।
- जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, या देरी होती है।
- यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्तिा में भी फंसना पड़ जाता है।
- जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।
- जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान भी रहना चाहिए।
- जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।
- जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंधिात जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
- जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति 1ए 3ए 4ए 5ए 6ए 7ए 8ए 11 या 12वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।
- जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
- जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (1ए 4ए 7ए 10वें भाव) या त्रिकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृध्दि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
- जब शुक्र दूसरे या 12वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
- जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
- जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।
- जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हों। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
- जब शुक्र से मालव्य योग बनता हो, यानी शुक्र अपनीराशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हों। तब कालसर्प योग का विपरत असर काफी कम हो जाता है।
- जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।
- जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती है।
- जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृध्दिदायक होता है।
- जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती।
Friday, September 03, 2010
काल सर्प योग के बुरे प्रभाव
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured Post
पाराशर के अनुसार ग्रह दृष्टि
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् || भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हु...
-
jyotish,bhavishya,dainik rashiphal,rashifal,sury,chnadra,mangal,budh,guru,shukr,shani,rahu,ketu,kundali
-
यह कुंडली चक्र राशी स्वामी को बताता है जैसे -मेष का स्वामी मंगल ,वृषभ का स्वामी शुक्र इत्यादि ......... इसी को कालपुरुष कुंडली चक्र भी कहते...
-
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् || भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हु...
5 comments:
पंडित जी नमस्कार
आपने मेरे प्रश्न का जवाब दिया उसके लिए धन्यवाद्| आपने जैसा कहा था वैसा ही हुआ है |
आप का अच्छा अभ्यास है कुंडली में |
सुशीला
dear sir ji
mai bahut hi khush hun aapka lekh padkar aapne nai nai jankarri di hai |aapke liye bahut shubhkamnayen,
aap yese hi aage likhate rahen|
rakesh singh
bhupendra jee jankaari atyant upyogi hai. dhanyavaad
Sir namaste
aapne bahut achhi jankaree di hai,maine kai logon ko bataya ve log apka blog padkar bahut khush huye,mai meri taraf se bahut shubhkamnayen
dhanyawad
amit bhopali
bhupendra ji
kal sarp ke prabhaaon ko aapne achhe tareeke se likhane ka prayas kiya hai,yaj bahut hi sahyogee hai
dhanywad
kapil singh
Post a Comment