इसको प्रत्येक स्थान में अलग नामों से भी जाना जाता है | यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में किया जाता है | सभी व्रत आदि का एक निश्चित नियम और समय भी होता है | उसी तरह यह व्रत भी उसी तृतीया में करना चाहिए जो चतुर्थी तिथि से जुडी हुई हो | इस वर्ष की यह तिथि ११-९-२०१० शनिवार को रहेगी | तभी व्रत करना अच्छा होगा | यह व्रत माता गौरी के लिए किया जाता है ज्यादातर इसको स्त्रियाँ ही करती हैं | इस व्रत को नियम और भक्ति पूर्वक करने से पति को होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है | यह व्रत बिना जल अर्थात निर्जल रखने का नियम व परम्परा है | इस दिन मुख्यतः शिव का माता पार्वती के साथ पूजन करना चाहिए |
प्रायशः मिट्टी की मूर्ती बनाकर पूजा करने का नियम है | इस व्रत में माता को शृंगार सामग्री अर्पण की जाती
हैं | इस व्रत में रात्रि को सोना वर्जित है | रात्रि में जागरण करना और प्रातः देव विसर्जन के बाद पारण करने का नियम है |
2 comments:
jankari ke liye dhanyavaad.
jay ganesh pandit ji
aapne vrat par bahut thik likha hai meri mammi bahut khush huii maine unko sunaya tha
dhnaywad
anshika
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