आर्यभट्ट के जन्म के वर्ष का आर्यभटीय में स्पष्ट उल्लेख है, उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विद्वानों के मध्य विवाद है.कुछ मानते हैं कि वे नर्मदा और गोदावरी के मध्य स्थित क्षेत्र में पैदा हुए थे, जिसे अश्माका के रूप में जाना जाता था और वे अश्माका की पहचान मध्य भारत से करते हैं जिसमे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल है, हालाँकि आरंभिक बौद्ध ग्रन्थ अश्माका को दक्षिण में, दक्षिणापथ या दक्खन के रूप में वर्णित करते हैं, जबकि अन्य ग्रन्थ वर्णित करते हैं कि अश्माका के लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे, इस हिसाब से अश्माका को उत्तर की तरफ और आगे होना चाहिए.
एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट्ट चाम्रवत्तम (१०एन५१ ,७५ई४५), केरल के रहने वाले थे. अध्ययन के अनुसार अस्मका एक जैन प्रदेश था जो की श्रावान्बेल्गोला के चारों तरफ फैला हुआ था, और यहाँ के पत्थर के खम्बों के कारण इसका नाम अस्मका पड़ा. चाम्रवत्तम इस जैन बस्ती का हिस्सा था, इसका प्रमाण है भारतापुझा नदी जिसका नाम जैनों के पौराणिक राजा भारता के नाम पर रखा गया है. आर्यभट्ट ने भी युगों को परिभाषित करते वक्त राजा भारता का जिक्र किया है- दासगीतिका के पांचवें छंद में राजा भारत के समय तक बीत चुके काल का वर्णन आता है. उन दिनों में कुसुमपुरा में एक प्रसिद्द विश्वविद्यालय था जहाँ जैनों का निर्णायक प्रभाव था, और आर्यभट्ट का काम इस प्रकार कुसुमपुरा पहुँच सका और उसे पसंद भी किया गया.
हालाँकि ये बात काफी हद तक निश्चित है की वे किसी न किसी वक्त पर कुसुमपुरा उच्च शिक्षा के लिए गए थे और कुछ समय के लिए वहां रहे भी थे.[३] भास्कर I (६२९ ई.) ने कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र( आधुनिक पटना) के रूप में की है. गुप्त साम्राज्य के अन्तिम दिनों में वे वहां रहा करते थे, यह वह समय था जिसे भारत के स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है, विष्णुगुप्त के पूर्व बुद्धगुप्त और कुछ छोटे राजाओं के साम्राज्य के दौरान उत्तर पूर्व में हूणों का आक्रमण शुरू हो चुका था.
आर्यभट्ट अपनी खगोलीय प्रणालियों के लिए संदर्भ के रूप में श्रीलंका का उपयोग करते थे और आर्यभटीय में अनेक अवसरों पर श्रीलंका का उल्लेख किया है
Monday, August 23, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured Post
पाराशर के अनुसार ग्रह दृष्टि
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् || भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हु...
-
jyotish,bhavishya,dainik rashiphal,rashifal,sury,chnadra,mangal,budh,guru,shukr,shani,rahu,ketu,kundali
-
यह कुंडली चक्र राशी स्वामी को बताता है जैसे -मेष का स्वामी मंगल ,वृषभ का स्वामी शुक्र इत्यादि ......... इसी को कालपुरुष कुंडली चक्र भी कहते...
-
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् || भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हु...
1 comment:
आचार्य जी नमस्ते
आपने जो आर्य भट्ट जी और वराह मिहिर ,भास्कराचार्य जी के बारे में बहुत ही अच्चा लिखा है
Post a Comment