सूर्य [sun]
रवि ही सूर्य मंडल की आत्मा है | सूर्य न हो तो पूरा संसार ही तहस नहस हो जाये |
सूर्य शरीर में उत्साह बढाने वाला और आत्मा का कारक मन जाता है |
शरीर के हिस्से
रवि का आत्मा , चेतना शक्ति और ह्रदय पर अधिकार है | शरीर में उर्जा का कार्य ,रोग प्रति -शोधक का कार्य ,श्वेत पेशियों का निर्माण भी सूर्य के क्षेत्र में है| आँखों की ज्योति और शारीरिक शक्ति का भी विचार सूर्य से किया जाता है|
सूर्य के गुण
सूर्य पूरे संसार को प्रकाश देता है तो निश्चित है की सूर्य प्रभावित व्यक्ति भी सभी का हित करने वाला होता है | सूर्य समय का प्रतीक है तो व्यक्ति भी अनुशासन प्रिय होता है | सच्चा प्यार करने वाला , अधिकार वृत्ति वाला,होनहार,खुशमिजाज , सभी को एक समान देखने वाला ,गुण ग्राही ,काम को ईमानदारी से करने वाला , निडर , सभी का विश्वास मानने वाला ,मान सम्मान प्रिय , भगवान को मानने वाला,(ये लोग कायिक पूजा कम करते हैं यह मेरा अनुभव है ) न्याय प्रिय, और समाज में सम्मान पाने वाले होते हैं |
नोट - सूर्य के बताये गए फल उसके बल और कुंडली में स्वभाव के अनुसार मिलेंगे |
सूर्य का स्वास्थ्य विषय -
आँखों के रोग,दिल की बीमारी , हर तरह के बुखार,सिर के आतंरिक हिस्से की चोट,हड्डी के रोग,आग से भय,हाजमें की परेशानियाँ सूर्य के द्वारा देखि जाती हैं|
सूर्य का स्थान-
शिव मंदिर , प्रशासनिक स्थान ,उर्जा विद्युत् केंद्र,हॉस्पिटल ,दवा निर्माण स्थान ,चिड़िया घर , रक्षा करने वाले स्थान |
सूर्य से प्रभावित कार्य -
सरकारी नौकरी,सरकारी संस्थाएं,उर्जा निर्माण केंद्र,अनाज के संग्रह करने वाले स्थान,टीका केंद्र,डॉक्टर,जनरेटर,विद्युत् उपकरण , वन क्षेत्र,राशन की दुकान |
अंक ज्योतिष में सूर्य का प्रभाव -
यह १ अंक का स्वामी है अतः १,१०,१९,२८, दिनांको को यह प्रभावित करता है|
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured Post
पाराशर के अनुसार ग्रह दृष्टि
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् || भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हु...
-
jyotish,bhavishya,dainik rashiphal,rashifal,sury,chnadra,mangal,budh,guru,shukr,shani,rahu,ketu,kundali
-
यह कुंडली चक्र राशी स्वामी को बताता है जैसे -मेष का स्वामी मंगल ,वृषभ का स्वामी शुक्र इत्यादि ......... इसी को कालपुरुष कुंडली चक्र भी कहते...
-
पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् || भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हु...
No comments:
Post a Comment